प्रधानाचार्य की कलम से
इतिहास गवाह रहा है कि किसी भी समाज कि उन्नति एवं प्रगति उसकी भावी पीढ़ी पर निर्भर है ।
भावी पीढ़ी शिक्षा के माध्यम से मानवीय मूल्यों, आदर्शो एवं संस्कारों का बीज बोकर सफल जीवन
जीते हुए मोक्ष को प्राप्त करे यही उदेशय है । तभी तो कहा गया है – सा विधा या विमुक्तये ।
मानव शरीर के प्रत्येक अंग अवयव में असीम शक्तियां छिपी हुई है । इन्हें जानने एवं विकसित
करने क़ि जरुरत होती है जिससे जीवन समृद्ध, समुन्नत एवं गौरवशाली बन सके ।
साहस, शौर्य, उधम, परिश्रम, उद्योग, धैर्य एवं संघर्ष क़ि अद्भुत शक्तियां सिर्जनात्मक विचारो
से उत्पन्न होती है जिनका प्रयोग जीवन के किर्यात्मक क्षेत्र में करने से इच्छित फल क़ि प्राप्ति होती है ।
इसलिए तो कहा गया है – उत्तिष्ठत , जाग्रत, वरान्निबोधत अर्थात उठो, जागो एवं श्रेष्ठ लक्ष्य को प्राप्त करो ।
शिक्षा का असली उदेश्य –
"असतो माँ सद्गमय ” ” तमसो माँ ज्योतिर्गमय “
“मृत्योमार अमृतं गमय”
से झलकता है । अतः प्रतिभा एवं तेजस्विता जैसे गुणों को
विकसित कर पुरुषार्थ एवं प्रयत्न के बल पर समृद्धि को प्राप्त करें एवं समाज के अभ्युदय और विश्वकल्याण का सतत प्रयास करते रहें ।
तभी तो –
इस पथ का उदेश्य नहीं है, श्रांत भवन में टिक रहना
और पहुंचना उस मंजिल तक, जिसके आगे राह नहीं ।।